Wednesday 20 April 2011

बेटी या बेटा तो अपना ही है





चाक पर चढ़ी माटी
घूमती है चाक पर,
खेलती है कुम्हार के हाथ,
कभी पानी लगाता है कुम्हार
कभी ढ़ालता है उसे एक आकार में
धीरे-धीरे लेने लगती है माटी आकार
फिर बनता है घड़ा, सुराही,गुल्लक या कुछ और
लेकिन पकने पर ही हो सकता है, इन सबका उपयोग।
लेकिन फिर नहीं बनता है इनमें से कुछ भी
यदि रह जाती है माटी गीली
या नहीं दे पाता है कुम्हार ध्यान
नहीं लगाता है सही समय पर और सही जगह पर हाथ
तो वह बिगस जाती है
और
रह जाती है, माटी की माटी ।
पर माटी तो माटी है, जैसा ढ़ालोगे, ढ़ल जायेगी ।
पर बेटी या बेटा तो अपना ही है ।