आखातीज, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है कि हम अक्ती कि बात कर रहे हैं | इस दिन खूब विवाह होते हैं क्यूंकि इस दिन मुहूर्त नहीं निकालना होता है और| और होते हैं उन विवाहों में होते हैं बाल विवाह | बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है | हम (समाज) उन बच्चों की अपने मतलब के लिए शादी तो कर देते हैं लेकिन क्या हम जानते हैं कि उन बच्चों पर क्या गुजरती है !!!!!!
ये उनके खेलने कूदने की उम्र ही तो है | अपने सपने बुनने और उनको आकार देने के लिए तैयार होने की उम्र है | अभी तो वो खुद ही गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हैं और उनका ब्याह रचाते हैं | पर हम ये क्या करने लगे अपनी खुशियों के लिए उनकी खुशियों का गला घोंट कर उनका ब्याह रचने लगे | इससे हम अपनी जिम्मेदारियों से तो हम बच गए लेकिन क्या हमने यह सोचा कि उन पर हमने कितनी जिम्मेदारी लाद दी ?
कम उम्र में शादी से न केवल बच्चों के सुरक्षा के अधिकार का हनन होता है वरन उनके स्वास्थ्य और विकास के अधिकार के साथ साथ जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन होता है |
बालविवाह के छुए अनछुए पहलुओं पर नजर डालता ये ब्लॉग गुड्डा-गुडिया |
Sunday 2 May 2010
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वैसे प्रशांत जी कई लोग उम्रदराज होने के बावजूद बडे, बालिग नहीं हो पाते। उनका क्या करें ? आखातीज भी उन्हीं के लिए आती-जाती है।
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